पत्रकार नईम क़ुरैशी - आज के युवाओं में काम करने का समर्पण हैं, लेकिन उसके पास परिणाम प्रापित के लिए संयम और समय नही है। यासमीन फारूकी

 अपनी संस्कृति से जुडे रहकर नयी विचारधारा के पथ पर अंतगति तक बढ़ने वाले लोग बहुत कम ही मिलते हैं। कुछ ऐसे ही पुराने और नये जमाने का कामिबषन हैं, श्रीमती यासमीन फारूकी। इन्होंने अपनी कौम के काम को समाज सेवा को तथा अपनी विचारधारा को इस तरह अपनाया कि वे इससे अलग ही नही थी, वैसे ही अपनी संस्कृति और विचारों को भी सहेज कर रखा है। श्रीमती यासमीन फारूकी का जन्म 2 अगस्त 1954 को टोंक में हुआ। दस वी तक टोंक में पढ़ार्इ की उसके बाद ग्रेजूऐषन जयपुर में की।
पिछले 25 वर्षो से समाज व कौम के लिए काम कर रही है, और सभी समाज के लोगों में पहचान रखती है। आज उनको किसी भी पहचान की जरूरत नही कर्इ सरकारी विभागों में पहचान रखती है व उनसे समाज व कौम का काम कराना भी जानती है। यही वजह है लोंग अपनी परेषानीयों को लेकर उनके पास आते है, और व अपने मषवरों से अपनी कोषिषो से उसकी परेषानीयों दूर करती है। और इसी समाज सेवा को देखकर उनके पति षमीम फारूकी भी उनका उत्साह बढ़ाते है वे पूरा पूरा सहयोग भी देते है

यासमीन फारूकी फारूकी का मानना है आज का युवा प्रगतिषील है। आज के युवाओं में काम करने का समर्पण हैं, लेकिन उसके पास परिणाम प्रापित के लिए संयम और समय नही है। यदि युवा पीढ़ी में थोड़ा धैर्य और आ जायें तो समाज और देष की तकदीर बदल सकती है। फारूकी फारूकी बताती है हमें समाज व कौम की खिदमत का जो भी मौका मिलता है हमें उसे छोड़ते नही एक बार की बात है षहर में जब दंगें हुवे तो कर्फयू लग गया। और आठ दिन तक कर्फयू रहा उस समय भैरो सिंह मुख्यमंत्री थे उनसे मिलकर बातचीत की तो गर्वनर साहब ने हमें पाच लोगों को पास बनाकर दिये। जिससे कि हमने लोगों की मदद की जो बहुत गरीब थे उनको खाने पीने का सभी सामान  


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