पत्रकार नईम क़ुरैशी - इंसानियत की मिसाल है। डाॅ ललित कुमार बाँगा

इंसानियत की मिसाल है। डाॅ ललित कुमार बाँगा

 डाॅ ललित कुमार बाँगा अपने इस व्यस्त जीवन में भी वह अपने दैनिक कार्यों को पूरे अनुशासनात्मक ढंग से पूरा करते हैं। सच बोलना और ईमानदारी की राह पर चलने को भी वह सफलता का सबसे बड़ा मंत्र मानते हैं। व अपने जीवन में खान-पान में संयम, अनुशासनात्मक जीवन तथा खुश रहना तथा दूसरों को खुश रखना ही उनके जीवन का मूल मंत्र हैं। इसके साथ ही व अपने इष्वर को भी कभी नही भूलते व कहते है कि में उस इष्वर को जब याद करता हूँ तो मन भावूक हो जाता है क्यूकि उसने मुझे औकात से ज्यादा दिया है। और मेरी प्रेरणा भी वही है, तो रखवाला भी वही है, में उसकी छत्रछाया में हूँ तो सिक्योर हूँ, वो मेरा सब कुछ है। वो मुझे मेरी ओकात रोज याद दिलाता है। और मेरी औकात भी इतनी है कि मुझे एक दिन एक थेली में ले जाकर गंगा में बहा दिया जायेगा। और दिवारों पर लिखे नाम ये बिल्डिंगे सब मिट जायेंगे। बस कर्म ही एक ऐसी चीज है जिसकी सुगंध रह जायेगी। यह उक्त विचार डाॅ ललित कुमार बाँगा के है।
 परिचय: डाॅ ललित कुमार बाँगा का जन्म सन् 1968 को अलवर में हुआ। पढ़ाई उन्होंने जयपुर में ही पूरी की। तथा उन्होंने बीएड, एमएड, फिर पीएचडी राजस्थान युनिवर्सीटी से की। डाॅ ललित कुमार बाँगा जी को बचपन से ही एक शैक्षणिक माहौल मिला। ललित कुमार बाँगा जी के माता-पिता अकसर किसी न किसी सामाजिक कार्य तथा टिचिंग प्रोफेषन से भी जुड़े रहे, अतः लोगों की सेवा करने का बीज प्रारम्भ से ही उनके अन्दर था। और इस बीज को एक वृक्ष में विकसित करने में उनके माता-पिता ने खाद-पानी का काम किया। सौभाग्य से शादी के बाद से ही उन्हें पत्नी का भी डाॅ ललित कुमार बाँगा जी को सहयोग मिल रहा है। जिसके कारण उन्होंने अपने सामाजिक कार्यों को पुर्ण रूप से जारी रखा हुआ है।

स्कूल के बारे में बताये? ध्रुव बाल निकेतन सी. सै. स्कूल 1982 से संचालित है उसका में डायरेक्टर हुँ, वर्तमान में स्कूल में चार हजार बच्चे षिक्षा ले रहे है। स्कूल को आगे बढ़ाने में सभी का आर्षिवाद रहा सभी लोगों ने खुदा से भगवान से दुआ की है। यह उन्ही लोगों की दुआओं का असर है कि यह स्कूल आज सीनियर सैकण्डरी तक है। इस की विषेषता यह की हमने 6क्लास से गल्र्स और बाॅयज के बैठने की विवस्था अलग-अलग की हुई है।

आपकी योजनाओं के बारे में बताये? बेटियों के लिए एक प्यारी परी योजना बनाई हुई है। उसके लिए अलग से फंड बनाया हुआ है। जो बेटी पढ़ने में पैसों के कारण असमर्थ है हम उन बेटियों को पढ़ाने में प्यारी परी योजना के फंड खर्च करते है। तथा विभिन्न तरीकों से भी बेटी को पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करते है। हमारी दूसरी योजना है नारी षक्ति योजना हम इस योजना के तहत मदर को बढ़ायेगें ”सुगंधा“ इस योजना का नाम रखा है। जिसके तहत हम उन मां को पढायेंगे जो खुद बच्चों को पालने में अपना अस्तित्व भूल चुकी है और उन्होंने अपने मन में ऐसी सोच बनाली है कि वे सिर्फ किचन तक ही सिमित है। हम विडियों के जरीए व अन्य तरीको से उनको जागरूक करेगें। कि एक महिला किचन व बच्चों को पालने के अलावा बहुत कुछ कर सक्ती है। हम दिषा बदलने की कोषिष कर रहे है। तकि लोगों की दषा बदल सके।

आपका लक्ष्य किया है? हमने बेटियों के हालात बदलने का संकल्प लिया है। हम अपनी कोषिषों से कितने लोगों की जिंदगी को चेन्ज कर पाते है यह भगवान पर निर्भर करता है। हम अगर एक को भी सही दिषा दे पाये तो ये हमारी उपलब्धी होगी। और उस मालिक का षुक्र है कि समाज में रहकर समाज के लिए कुछ कर रहे है। मुझे जो कुछ मिला है ये समाज से ही मिला है और उसी को लोटा रहा हुॅ किसी तरीके का किसी पर कोई ऐहसान नही कर रहा हुँ। इसके अलावा अनाथ आश्रम खोलना का संकल्प है। मालिक ने चाहा तो ऐसा आश्रम खोलने का संकल्प है जो कि इतना खूबसूरत होगा पूरे जयपुर मे कही भी देखने को नही मिलेगा सबसे खूबसूरत होगा वहा बच्चे पुराने कपड़े नही पहनेंगे और वही खाना खायेंगे जो मेरे बच्चे खाते है। हम ऐसा आश्रम जल्द खोलेंगे जो की प्यार की मिसाल होगा।

आपने एक फिल्म निमार्ण किया है उसके पीछे किया उद्देष्य है?
आज समाज में बेटी को लेकर जो बिगाड़ आ रहा है। जो रिष्तें आज बिखर रहे है। एक औरत ने कभी मां, कभी बहन, कभी बेटी, कभी भाभी के रूप में इस समाज में अपना कर्तव्य बाखुबी निभाया, लेकिन फिर उनके साथ अत्याचार क्यंू। फिल्म का उद्दष्य यही है, कि रिष्तों में खोये हुए प्यार और विष्वास को फिर से सँवारने का एक छोटा सा प्रयास ”सच रिष्तों का“ नामक फिल्म के जरिये से किया है।

आपकी फेमिली के बारे में बतायें? मेरे परिवार में मां-बाप है जो कि मेरी दौलत है, उनको देखकर मेरे जीवन में स्माइल है। मेरे माता-पिता दोनों ही टिचिंग प्रोफेषन से जुड़े रहे, गर्वमेंट स्कूल से रिटायर हो चुके है। लेकिन पिता जी अभी भी धुव परिवार के साथ जुड़े है और स्कूल में एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी निभा रहे है। एक भाई है, वाईफ अमिता है जो मुझे अच्छे कामों के लिए मोटीवेट करती है। बेटा अभिनव जो कि बेंगलोर में है उसका बीटेक में फाइनल होनेे वाला है। बेंगलोर में ही उसकी पोस्टिंग हो गई है। मेरी एक बेटी भी है जिसका नाम षुभांगनी है व अभी 9वीं क्लास में है कथक डांसर है। फस्ट क्लास से कथक सीख रही है। उसने कथक में बी.ए कर लिया है।

हमारे द्वारा समाज के लिए कोई मेसैज:
सबसे पहले सभी बेटियों को मेरा नमन, एक बेटी जो कि प्रत्येक रिष्ते की जननी हैं। चाहे वो बहन का हो या मां, भाभी, बेटी, जीवन-संगिनी, पोती, और दोस्त। प्रत्येक रिष्ते में आप सम्मान की पात्र हैं। सभी धार्मिक ग्रन्थों में आपको उच्च स्थान प्रदान किया गया है। विषेष बात तो यह है कि आपने समस्त रिष्तों को स्नेह व विष्वास की सुन्दर डोर से जोड़ा हुआ है लेकिन कुंठित व गंदी मानसिकता वाले लोगों के कारण दादा- पोती पापा-बेटी, देवर-भाभी भाई-बहन, दोस्त जैसे खूबसूरत रिष्ते तार-तार हो रहे हैं। बेटा जी, आप सभी को यह जिम्मेदारी लेनी होगी कि बेटी ऐसे लोगों से सावधान रहे जो इन पवित्र रिष्तों को कलंकित करते हैं, उनके प्रति सम्मान नही रखते और जिन्हें इन रिष्तों की गरिमा का पता नही हैं। आइये! हम इन पवित्र रिष्तों की रक्षा का संकल्प लें। अपका अपना भय्या डाॅ ललित कुमार बाँगा।


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