पत्रकार नईम क़ुरैशी - हर फन के फनकार है, इकराम राजस्थानी

 हर फन के फनकार है, इकराम राजस्थानी
राजस्थानी फिल्मो के जादूगर कहे जाने वाले इकराम राजस्थानी .का कहना है में इतना लिखू कि एक संदेष बनकर जीऊ यह मेरी कल्पना है लोगो को इक दुसरे से जोड़ने का काम हमेषा से करते आए है राजस्थान ही नही पूरे भारत में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले इकराम राजस्थानी, राजस्थान के चैमू जिले में 1946,मे पैदा हुअ आज भी रूके नही है फिल्मो के लिए गीत व षायरी ,लिख रहे है हिन्दू मुस्लिम सिंख इसाई हर धर्म को जोड़ने का काम करने वाले इकराम राजस्थानी से आपको परीचित करा रहे है
आपको लिखने का षौक कब से हुआ?
हम एक पढ़े लिखे परिवार से तो है ही लेकिन यह लिखने का जो षौक मुझे लगा वो मुझे मेरे पिता जनाब अलाउद्दीन खान जी मिला उनको लिखने का बहुत षौक था जो कुछ मैने सीखा है उन्ही को देखकर सीखा है लिखने का काम बहुत पहले से किया जब में स्टूडैन्ट था तब से ही लिख रहा हुॅ लिखते-लिखते लोगो ने कहा में गीत लिखूु तो मेनें राजस्थानी कई गीत लिखें।
आपके फिलमी जीवन के सफर के बारे में बताऐ?
दस साल तक मैनें टिचिंग जाबॅ किया, फिर में आकाषवाणी बतोर अनाउंसर मेरी एंट्री हुई फिर में स्क्रिपट राईटर बन गया, मेरा कारवां इसी तरह चलता रहा प्रोडयूसर, असीसटेंड डायेरेक्टर बना, जोनल हेड बन गया अनाउंसर से डायेरेक्टर तक का सफर तय किया इतनी मेहनत की (जब भी पिया है पत्थरो को तोड़कर पानी पिया है, बूंद भर का भी ऐहसान मुझ पर समंदर का नही है) इतनी मेहनत करके आगे आया हुॅ, पिछले 25 साल से दिल्ली लालकिले और राष्ट्रपती भवन पे 15 अगस्त 26 जनवरी का आखों देखा हाल सुना रहा हुॅ, नेषनल कमेन्ट्रेट हुॅ, और मैनें लाखो कार्यक्रमों का मंच संचालन किया, सैंकड़ो मुषायरो का संचालन किया कई कवी सम्मेलनों में भाग लिया  


आपके आगे की योजना बतायें?
(में अभी रूका नही हु रूक गया तो मेरी सासें भी रूक जायगी फांसलें और बढा दो कि जिन्दा हुॅ में अभी) अभी मैनें कोई पढ़ाव नही देखा है। इसलिय में आगे बढ़ता जा रहा हुॅ लोग मुझे चलते फिरते षैरो की खान कहते है। माइक आफॅ लाॅइनस लोगो ने कई बार खिताब दिया है। ( बरसो फिरे है पावों में छालें लिये हुवे, अपना तो वही दौर दोबारा है इन दिनो में)

आपके लिखे हुवे गीतों के बारे में बतायें?
मैनें एक गीत लिखा था इंजन की सीटी में मारो मन डोले, चला चल्ला रे ड्राईवर होले-होले, इस गीत का यह आलम था राजस्थान में कई फिल्में बनी लेकिन इतनी लोक प्रियेता कोई हासिल नही कर पाया। और इसकी लोक प्रियेता का यह आलम था लोगो नें इसको चुराया और अस थीम को चुराकर माॅ फिल्म इसका विमोचन किया और आज के सुपर स्टार षाहरूख खान उस समय टीवी सीरीयल व सर्कस में भी यही गीत गाते हुअ आगे बड़ रहे थे। और उस जमाने में एक गीत और हुआ करता था पल्लो लटके उसे दिल्ली में रिमाइंड कर रहे थे उन्होनें मुझसे कहा कि इस में एक नयापन पैदा करदो तो मैनें कहा इस गीत नयापन यह हो सक्ता है इसको मोर्डन बनाले तो मैनें उसमें बोल दिये, पचरंगी लहरायो रंग उड़वे लो जरा सो उचों लेलें नही तो पल्लो भीग जावेलों इस गीत की लोक प्रियेता को देखकर मंजनू सुलतानपुरी जैसे गीतकार ने इस गीत को कोपी किया और गीत को संजीव कुमार की फिल्म नोकर में इसे चुना, और कई हिन्दी फिल्मों में मैनें आपने गीत दिये, और लोग फिल्मो से ज्यादा मेरे गीतों को इनजांय कर रहे थे इसलिय लोग मुझे राजस्थानी गीतों का जादूगर कहतें है। और मेरे चाहने वाले में से है, मैरे सबसे अजीज दौस्तों मे है, जिनको फिल्मों की मषीन कहा जाता है के.सी.बोकाडीया, एक बार उन्होनें मुझसे कहा मैरे लिये एक आईटम सोंग लिख दो, मैने उन्हे लिखकर दिया तो उन्होनें कहा यह बहुत अच्छा है, उस वक्त एक फिल्म बनी, दिया और तूफान, के.सी.बोकाडीया, जी की जिसमे सारकाष्त थे मिथून चक्रवती और मधू, पप्पी दा म्यूजिक डायेरेक्टर, तो इस फिल्म में यह मेरा आईटम सोंग था, सैया धीरे धीरे आना आधी रात को कुण्डी धीरे से खटकाना आधी रात को, यह आईटम सोंग उस बड़ा सुपर हिट हुआ उसके बाद के.सी.बोकाडीया, मैरे काम से बहुत खुष हुवे तब से लेकर आज तक वो मुझसे कहते रहते है कि आप हमारे लिए कुछ ना कुछ लिखते रहा करो अभी एक फिल्म बना रहे है, डर्टी पोलटिक्स इस फिल्म के लिए भी वो मुझसे कई मुखड़े लेकर गये है। और मेरी लिखी हुई गजलो कों मिताली भुपेन्द्र व सईद फरीद साबरी और अहमद हुसैन मौहम्मद हुसैन गा रहे है। और बहुत से मषहुर लोग गा रहे है।
आप अपने प्रदेष के लोगों कोई संदेष देना चाहेंगे।
जी हां नईम मियां मे अपने प्रदेष के लोगो को आपकी फिल्मी परीवार मेंगजीन के द्वारा एक संदेष देना चाहुंगा ( हालात जिन्दगी के अब कुछ समझ रहें हैं, जो कुछ नही हैं खुद को सब कुछ समझ रहें हैं। अपने बढ़ो के हमने दाबें हंै पाॅव बरसो,ं यह दुनियां वाले हमको तब कुछ समझ रहे है) तो यह पैगाम दिया है मैने नोजवानों को के अपने बुजुर्गो की इज्जत करो आदर करो उनका कहना मानो उनसे दुआ लोगो तो आगे बढोगें।

आपके हिसाब से राजस्थनी फिल्मों के पिछड़ने का क्या कारण है?
आज राजस्थान में हर कोई डायरेक्टर है हर कोई प्रोडयूसर है हर कोई संगीत कार है, वो जेसी चहें फिल्म बना रहे है इस से हमारे राजस्थान फिल्मो का स्तर गिरा है। लखविन्द्र सिंह को इस लिये पसंद करता हुॅ बड़े तजुरबेकार लोगों के साथ मिल कर फिल्में बनाता है उसमें डायरेक्षन की सलाहियत है परचार परसार मारकेटिंग करने की दिल लगा कर काम करने की वो लगन है ऐसे डायरेक्टर ही राजस्थान के लिऐ कुछ अच्छा सोच सक्ते है राजस्थान फिल्मो को वो खोया हुआ मुकाम दिला सक्ते है।

आपको क्या लगता है, राजस्थानी सिनेमा के विकास के लिए सरकार को क्या करना चाहिए?
मेरा कहना है सरकार हम लोगो के लिए एक सेंसर बोर्ड बनाये, अच्छी कमेटी बना दे सबसीडी के जरये लोन दे फिल्मों के लिए मदद करें, हर सिनेमा को आदेष दे के वो राजस्थानी फिल्म का हर रोज एक षो दिखायेेेेेे, नही तो उनके लाईसेंस रद कर दिये जायें। गधो के खरीद ने के लिए लोन दे रही है सरकार भेड बकरीयो के लिए आयोग बना रही है। लेकिन फिल्मों के लिए कोई अनुदान नही है 

आपके समाजिक काम बतायें?
सारा काम मैने समाज को जोड़ने के लिए किया है। लोग मुझे आधुनिक रसखान कहते है, देष में राष्ट्रीय एकता अखण्डता का सबसे बड़ा पैगाम मैनें दिया है, लोगो को जोडने का काम क्या है, कुरान षरीफ को हिन्दी और राजस्थानी में अनुवाद मैनें किया है। रविन्द्र नाथ टेगोर की गीतांजली का राजस्थानी अनुवाद मैने किया है। हरीवंष राय बच्चन की मधुषाला का राजस्थानी में अनुवाद मैने किया है। हमेषा षान्ति सदभाव का पैगाम दिया है। गंगा जमना तहजीब के रूप में मुझे देखा जाता है। हमारा मुल्क जिस्में हम जी रहे हैं, उस मुल्क की पहचान यह है। (कबीरा खुष्रू तुलसी जाईसी रसखान रखता हुॅ, जहन में मीरा मन में मीर का दीवान रखता हुॅ , सदा सासों में गीता बाईबल कुरआन रखता हुॅ , में अपने दिल की हर धड़कन में हिन्दोस्तान रखता हुॅ) 

आपके धार्मिक काम बतायें?
मैनें जेैन धर्म के लिए लिखा, कुराआन के लिए लिखा, महाभारत का मुजिक डायरेक्षन किया, (चलो बनायें दोस्तों ऐसा हिन्दोस्तान मस्जिद में गीता पढ़े मदिंर कुरआन ) तो हम ऐसा हिन्दोस्तान बनाये और आसमानी किताबें जितनी भी उतरी है। इनमें कही भी नही लिखा कि हम एक दूसरे से लड़े एक दुसरे से नफरत करें। यह लड़ाने काम वो कर रह है, जिनको कुर्सी चाहिये,( इस सियासी जाल साजी के जरा अंदर तो देख, वो कुर्सी की होड़ में जलते हुवे यहे घर तो देख)

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