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पत्रकार नईम क़ुरैशी - चुनौतीपूर्ण भुमीकाओं से कसोटी पर खरा उतरा सिकन्दर

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     चुनौतीपूर्ण भुमीकाओं से कसोटी पर खरा उतरा सिकन्दर जयपुर रंगमंच की जानीमानी षख्सियत सिकन्दर चैहान, टीपू सुलतान, पिटारा, मैना सुंदरी, जैसे मषहूर 15 सीरीयलों में चुनौतीपूर्ण भुमीकाएं निभाई, तथा माटी का लाल, भंवरी, हुकुम, थोर, तांडव जैसी बड़ी फिल्मों में काम करके खरा उतरा सिकन्दर चैहान। जन्म:   सिकन्दर चैहान का जन्म मई 1973 जयपुर में हुआ 30 से अधिक नाटकों में सषक्त अभिनय व 5 नाटकों में निर्देषन किया। तथा 15 राजस्थानी व् भोजपुरी फिल्मों में हास्य व् खलनायक जैसी विभिन्न दमदार भुमिकाऐ निभाई तथा राजस्थान की फिल्मी दुनिया में अपनी विषेष पहचान बनाई। मार्गदर्षक:    सिकन्दर चैहान ने बताया कि उनके मार्गदर्षक लखन्दिर सिंह रहे। और यह मेरा सौभाग्य रहा कि में उनसे मिला और इसका श्रेय में मेरे मित्र अंदाज खान को दूंगा। जिन्होंने सूपर फास्ट डायरेक्टर लखन्दिर सिंह से मुझे जोड़ा उन्हांेने मेरी प्रतिभा को निखार कर हर फिल्म में चुनौतीपूर्ण भुमिकाओं से मुझे कसोटी पर खरा उतारा। इनके साथ षुरूआत 2009 में हुई व पहली फिल्म पप्लाज माता की जिसमें मैने काॅमेडी विलन की भूमिका निभाई, अभी तक कर

पत्रकार नईम क़ुरैशी - होसला कुछ कर गुजरने का

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होसला कुछ कर गुजरने का मां-बाप से मिली सीख ने हुसैन सुल्तानियाँ की लाईफ ही बदल दी और उनको एक अलग पहचान दी। हुसैन मूल झुनझूनु के है तब वे छोटे थे तब माता-पिता को लोगों की सेवा करते देखते तो उनको भी लगता था की व भी बड़े होकर लोगों की सेवा ही करेगें। और आज यूवाओं के लिए प्रेरणा का पर्याय बन चुके हुसैन सुल्तानियाँ पिछले 8 वर्षों से जयपुर में रह रहे है। राजस्थान युनीवर्सीटी में महासचिव पद के लिए छात्र चुनाव लड़ा और जीते लेकिन रिकाउटिंग की वजह से हार गये। हाल ही में उन्होंने एक उम्मीद, नामक संस्था रजिस्ट्रेषन के लिये दी है। हुसैन सुल्तानियाँ का संस्था रजिस्ट्रेषन कराने का उद्दष्य यही है कि व बहतर तरीके से जरूरतमंद लोगों की हेल्प करना चाहते है और उनकी उम्मीदों पर खरा उतर सके, इसी कोषिष में लगे है। माता पिता है, मेरे प्रेरक: माता-पिता एक ऐसा षब्द है जिसमे मैंने सब कुछ पा लिया, सब कुछ उन्ही से सीखा है, वही मेरे आर्दष है, बचपन से देखा है, माता-पिता को गरीबों की सेवा करते हुवे और मेरी माॅं आनाथलय जाती थी वहां बच्चों खाना खिलाना उनको कपड़े देना। तो उनको देखकर ही ललक पड़ी दूसरों की सेवा करने की।  आ

पत्रकार नईम क़ुरैशी - एकता की मिसाल कायम किये हुवे है। घी वाला परिवार

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एकता की मिसाल कायम किये हुवे है। घी वाला परिवार गफूर क़ुरेशी जयपुर के जानेमाने उन व्यक्तियों में से थे, जिनको पहचान की कभी जरूरत नही पड़ी, पाच पीड़ियों से जिनकी दुकान पानो के दरीबे में स्थित है। गफूर भाई घी वालो के नाम से पहचाने जाते थे सेवा भाव से समाज की सेवा की और उनके यहां 30 जून 1957 में एक पुत्र का जन्म हुआ जिनको अधिकांष लोग मोहम्मद इसलाम क़ुरेशी के नाम से जानते है। और पिता के नक़्षे कदम पर चलते हुवे ही इसलाम कुरैषी अपनी जिन्दगी व्यतीत कर रहे है। जयपुर में इनका जन्म हुआ तथा यही इन्होने ग्रेजुएषन की पड़ाई पूरी की। इसलाम कुरैषी समाज की सेवा के लिए हमेषा उपस्थित रहते है उन्होने अपने प्रयासो से कौम के लिए जो कार्य किये वो तारीफे काबिल है। अनेक संस्थाओं से जुड़े है। और 58 वर्ष की आयू में भी समाज सेवा के लिये उनमें जो जज़्बा है वो कही कम नही दिखता है। घी वाला परिवार के नाम से विख्यात है जयपुर षहर में यह परिवार एकता की मिसाल कायम किये हुवे है। जहां आज के युग में भाई-भाई में नही निभ रही है, वही ये मुस्लिम परिवार एक हिंदू परिवार से घी के व्यवसाय में पाॅच पीड़ियों से साझेदारी किये हुवे है य

पत्रकार नईम क़ुरैशी - महिलाओं के लिए बनी प्रेरणा

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                    महिलाओं के लिए बनी प्रेरणा कहते है कामयाब महिला वह नही होती है जो किसी बड़े पद पर हो बल्कि वह महिला होती है जिसने अपने परिवार को खुष रखा तथा जिसने अपने पद की गरीमा के साथ-साथ अपने परिवार की प्रतिष्ठा बनाये रखा हो। ऐसे ही व्यात्तित्व की धनी श्रीमती डाॅ. स्नेहलता भारद्वाज है।  श्रीमती स्नेहलता भारद्वाज का जन्म 1975, कोटा में हुआ। ऐजुकेषन जयपुर में ही ली, बचपन से ही पढ़ना, और समाज सेवा ही लक्ष्य था, महारानी काॅलेज से ग्रेजुएषन किया। श्रीमती स्नेहलता का बचपन पूरा अभाव में गुजरा है। जब चार वर्ष की थी तब उनकी माता की मृत्यु हो गई और जब वे दसवी क्लास में थी तब पिता का भी स्वर्गवास हो गाया था। जिंदगी संघर्ष का दूसरा नाम है। यहां सुख और दुख दोनों है। जिंदगी की डगर बड़ी ही कठिन है। इसी कठिनाईयों से गुजरने वाली श्रीमती स्नेहलता की लाइफ में भी कई उतार-चड़ाव आये लेकिन वे कभी डगमगाई नही। कठिनाईयों से मिली प्रेरणा: यह सच है कि मेरी लाईफ में काफी कठिनाई आई, लेकिन एक सच यह भी है कि चुनोतियों और जिम्मेदारियों से घबरा कर बैठे जाने से बेहतर आगे बढ़़कर उसे पूरा करना है। मैने अ

पत्रकार नईम क़ुरैशी - हकीकत में सम्मान की हकदार है ये मां

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            हकीकत में सम्मान की हकदार है ये मां इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है। मां बहुत गुस्से में हो तो रो देती है। सख्त राहों में आसान सफर लगता है। ये मेरी मां की दुआओं का असर लगता है। मां पर लिखी दुनिया के प्रसिद्ध षायर मुनव्वर राना की ये पंक्तियां आखें सलज कर देती है। दिल यही कहता है मां तुझे सलाम। राजस्थान के जिले जयपुर में एक ऐसी ही मां है, जिसकी दास्तां पढ़कर आप भी कहेंगे मां तुझे सलाम जयपुर में रहने वाली कैसर जहां आज मुस्लिम समाज के लिए एक मिसाल हैं। कैसर जहां कभी स्कूल नही गई और उनके पति हाजी अब्दुल गफ्फार पारस ने भी 8वी तक ही पढ़ाई की लेकिन उन्होंने अपने 8 बच्चों को ग्रेजुएट बनाया। चुड़ियों का काम करके हाजी गफ्फार साहब ने हज भी किया और बच्चो को अच्छी तालीम भी दी। अपने बच्चो में कभी फर्क नही किया कैसर जहां के पाॅच लड़की व तीन लड़के है उन्होने बराबर से अपने बच्चों में तालीम दी। जहां हमारे समाज में लड़कीयों को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है, वही इस महिला ने अपने तीन बेटों व पाॅच बेटियों को भी ग्रेजुएट बनाया और अच्छे संस्कार दिये। सलाम है ऐसी मां को। हाजी

पत्रकार नईम क़ुरैशी - जनता के वादों पर खरा उतरू। पार्षद रमेश कुमार भैरवा

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जनता के वादों पर खरा उतरू। पार्षद रमेश कुमार भैरवा कांग्रेस पार्षद रमेश कुमार भैरवा राजनीति में निगम चुनाव से ही चर्चा में आये, पिता श्री कल्याण सहाय के अनुभव से जयपुर निकाय चुनाव 2014 में सुरेष कुमार को हराकर जीत का बिगुल बजाया और वार्ड 69 पार्षद बने। रमेष कुमार भैरवा के पिता श्री कल्याण सहाय पुर्व में निमेड़ा से सरपंच रह चुके है वे रमेष कुमार भैरवा का जन्म अगस्त 1979 में निमेड़ा में हुआ तथा ग्रेजुएषन तक पढाई की है। यह वार्ड 69 वासियों के लिए बहुत बड़ी बात है कि उनको ग्रेजुएट पार्षद मिला है। रमेश कुमार भैरवा कांग्रेस पार्टी से बहुत ज्यादा प्रभावित है, उनका कहना है कि कांग्रेस की विचार धारा से में ज्यादा प्रभावित हुआ हुॅ। इस पार्टी की यह विषिष्टता कि आम आदमी को तथा सभी धर्मो के लोगो को साथ लेकर चलती है, सभी के लिए इसमें एक अलग स्थान है। कांग्रेस पार्टी ने देष को आजादी दिलाने में बहुत कुरबानी दी है। अपनी सादगी गांधीवादी मूल्यों के लिए पहचाने जाने वाले पुर्व मुख्यामंत्री श्री अषोक गहलोत की विचार धारा से प्रभावित हुॅ। जो राजस्थान में विकास हुवा है और गरीबों को जो लाभ मिला

पत्रकार नईम क़ुरैशी - मंगल पांडे के लुक ने बनाया सेलेब्रिटी

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मंगल पांडे के लुक ने बनाया सेलेब्रिटी  फिल्म देखकर रंजीत देवा से बने मंगल पांडे किया आज के समय में कोई इतना भी किसी का दिवाना हो सकता है कि उसका लुक ही हमेषा के लिये रखले। रंजीत देवा आमीर खान की फिल्म मंगल पांडे देखकर आमीर के लुक से इतना प्रभावित हुए कि उन्हांेने अपना लुक मंगल पांडे का ही बना लिया। लुक के रख-रखाव के लिये हजारों रूपये खर्च रंजीत देवा लुक के रख-रखाव के लिये हजारों रूपये खर्च भी करते है। और हेरत की बात यह है इनको देखने टूयूरिस्ट भी आते है। षादी सामारोह तथा फंक्षनों बतौर सेलेब्रिटी बुलाया जाता है व इनको देखने वालों की भीड़ लग जाती है और इनके साथ फोटो खिचवाते है, और तो और रंजीत देवा के पास कई कंपनीयों के एड के लिये फोन भी आने लगे है। रंजीत देवा ने बताया एक साबुन का भी एड किया है, इसके साथ मैने चष्में, टी षर्ट व पैन्ट का भी प्रचार किया है। थोड़ा बहुत भोजपुरी फिल्मों में काम किया है हाल ही में उन्होंने बोलेबमबम एलबम में भी काम किया है। आमीर के साथ काम करने की इच्छा रंजीत देवा आमीर खान के साथ काम करने की इच्छा रखते है, उनके फेवरेट हीरो आमीर खान है तथा हीरोईन एष्वर्या रा

पत्रकार नईम क़ुरैशी - वर्दी पहनने का मकसद निःस्वार्थ भाव से जनता की सेवा करना-डी.सी.पी हैद़र अली जैद़ी

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वर्दी पहनने का मकसद निःस्वार्थ भाव से जनता की सेवा करना-डी.सी.पी हैद़र अली जैद़ी कहते हैं कि मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं जिनके सपनों में जान होती है सिर्फ पंखों से कुछ नही होता, दोस्तों हौसलों से उड़ान होती है। सन् 1963 में जन्मे हैद़र अली जैद़ी मूल रूप से राजस्थान के जयपुर जिले के रहने वाले हैं। जयपुर में ही रहकर उन्होंने अपनी प्रारंभिक षिक्षा पूरी की। तन,मन, धन से जनता की सेवा करने की चाह रखने वाले 2006 बैच र्के आइ.पी.एस अधिकारी हैद़र अली जैद़ी का कहना है कि हमारे वर्दी पहनने का सिर्फ एक ही मकसद है जनता की निःस्वार्थ भाव से सेवा करना। डी.सी.पी. हैद़र अली जैद़ी ने प्रदेष में जिन-जिन जिलों में अपनी सेवाएं दी, वहां वो हमेषा अपने सुधारवादी कार्यों के कारण चर्चा में रहें। सहज, सरल और ईमानदार स्वाभाव के डी.सी.पी. हैद़र अली जैद़ी का कहना है कि वह जब तक ड्यूटी पर रहेंगे बिना किसी स्वार्थ के जनता की समस्याओं को दूर करने का प्रयास करते रहेंगे। वर्तमान में जयपुर में पुलिस उपायुक्त यातायात की कमान संभाल रहे हैद़र अली जैद़ी से खास बातचीत की  नईम कुरैषी ने। आई.पी.एस. बनने के पीछे के कारण क्या

पत्रकार नईम क़ुरैशी - माॅ बाप का सपना था कि में डाॅक्टर बनू और उन्ही की दुआओं का नतीजा है, कि में आज इस मुकाम पर हुॅ।

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माॅ बाप का सपना था कि में डाॅक्टर बनू और उन्ही की दुआओं का नतीजा है, कि में आज इस मुकाम पर हुॅ। कार्यक्षेत्र से लेकर निजी लाइफ में परेषानियां सभी के साथ आती है, लेकिन हर परेषानी के सामने घुटने टेक देने का नजरिया इंसान को कमजोर व उसकी दक्षता पर सवालिया निषान लगा देता है। जिंदगी जीना के नाम है, हर परेषानी को सकारात्मक सोच के साथ हल किया जाए तो लाइफ को बेहतर से बहतरीन बनाया जा सकता है। प्रोफेसर गुलाम कुतब चिष्ती भी जीवन को लेकर काफी सकारात्मक है। व एक कुषल प्रषासनिक डाक्टर होने के साथ-साथ बेहतर राजपुताना मेडिकल काॅलेज के प्रिंसीपल भी है। गुलाम कुतब चिष्ती का जन्म 15 फरवरी 1956 को सहारनपुर जिले के रूड़की षहर में हुआ। वे बताते है कि उनके पिता सूफीयत किस्म के थे, उन्होने मुझे डाॅक्टर बनाने के लिए अपनी हैसियत के मुताबिक तमाम कोषिष की, उनका सपना था कि में डाॅक्टर बनू समाज की सेवा करू, और आज उन्ही की मेहनत और दुआओं का नतीजा है, कि में इस मुकाम पर हुॅ। षुरूआती तालीम मैनेे यू.पी से ही हासिल की, जबकी 1974 में जयपुर आया और यही से मैने मेडिकल की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद 1986 से राजपुताना मेडिकल

पत्रकार नईम क़ुरैशी - महिला शक्ति की मिसाल बनी है। सन्तोष जायसवाल

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महिला शक्ति की मिसाल बनी है। सन्तोष जायसवाल एक आम धारना है कि हमारा समाज आज भी पुरूष प्रधान है। यहां समय के साथ महिलाओं को उनका अधिकार तो थोड़ा बहुत दिया गया, लेकिन आज भी परिवार से लेकर कार्यक्षेत्र तक हर जगह महिलाओं को पुरूष के मुकाबले कमतर आंका जाता है। हालांकि इससे इतर भी कई महिलाएं हुई, जिन्हांेने ऐसी सोच को न सिर्फ नकारा बल्कि महिला षक्ति की मिसाल बनी है। श्रीमति सन्तोष जायसवाल जिस समाजिक सरोकार से जुड़ी है वह वाकाई अ˜ुत मिसाल है। सन्तोष जायसवाल का जन्म राजस्थान के जिला दौसा मे हुआ, जयपुर से ग्रेजुएषन की। मानवता की मिसाल कायम कीः जहां बड़े बुजुर्ग लोग महिलाओं के ष्मषान जाने को सही नही मानते, वही एक महिला ऐसी भी है जो लावारिस षवों का अंतिम संस्कार कराने के साथ ही अस्थि कलषों को मोक्षदायिनी गंगा में प्रवाहित करने के लिए ले जाती हैं। कुरीतियों को तोड़कर मानवता की यह मिसाल कायम की है। राजस्थान के जयपुर षहर में रहने वाली सन्तोष जायसवाल ने। डेढ़ हजार से ज्यादा लोगों की अस्थियों को हरिद्वार ले जा चुकी हैं। सन्तोष जायसवाल पिछले सात वर्षो में डेढ़ हजार से ज्यादा लोगों की अस्थियों को हरिद्वार

पत्रकार नईम क़ुरैशी - श्री पदमचंद जैन जी का प्रेरक व समर्पित जीवन

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                            ’’’खास मुलाकात’’’       श्री पदमचंद जैन जी का प्रेरक व समर्पित जीवन                  पदमचंद जैन जी की संघर्ष करती जीवन यात्रा एक कामकाजी पुरूष के लिए उसका संघर्ष कभी खत्म नही होता, फिर चाहे वह किसी भी पद पर क्यों न हो, कोई भी कार्य क्यों न कर रहे हों। न सिर्फ सफलता के पथ पर बल्कि सफल होने के बाद भी उसे संघर्ष करना ही पड़ता है। पदमचंद जैन जी ने बचपन से ही संघर्ष करते आये है। पदमजी मूलतः जैसलमेर के रहने वाले हैं। इनके पूर्वज पाकिस्तान के रहने वाले है व आजादी से पूर्व दिल्ली के पास हापुड़ आकर रहने लगे। इन्होने षिक्षा हापुर में ही पूरी की। जब सात साल के थे, तो पिता का देहांत हो गया। उनके सद्गुणों व व्यापारिक कौषल का इन पर बड़ा प्रभाव रहा। ऐसे मुष्किल हालात में उन्होंने स्वंय अपने बलबूते पढ़ाई की और व्यवसाय भी संभाला। उन्नीस वर्ष की आयु में मां चल बसीं। अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए इन्होंने अपनी संघर्ष यात्रा जारी रखी, और आज वह लोगों की समस्याओं को हल करवाना उनका पहला कत्र्तव है। पदमजी मजबूत इरादों व संकल्प-षक्ति से भरपूर है। खुषमिजाज तथा मिलनसार व

पत्रकार नईम क़ुरैशी - आज का युवा प्रगतिशील है। यासमीन फारूकी

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आज का युवा प्रगतिशील  है। यासमीन फारूकी अपनी संस्कृति से जुडे रहकर नयी विचारधारा के पथ पर अंतगति तक बढ़ने वाले लोग बहुत कम ही मिलते हैं। कुछ ऐसे ही पुराने और नये जमाने का काॅम्बिषन हैं, श्रीमती यासमीन फारूकी। इन्होंने अपनी कौम के काम को समाज सेवा को तथा अपनी विचारधारा को इस तरह अपनाया कि वे इससे अलग ही नही थी, वैसे ही अपनी संस्कृति और विचारों को भी सहेज कर रखा है। श्रीमती यासमीन फारूकी का जन्म 2 अगस्त 1954 को टोंक में हुआ। दस वी तक टोंक में पढ़ाई की उसके बाद ग्रेजूऐषन जयपुर में की।  पिछले 25 वर्षो से समाज व कौम के लिए काम कर रही है, और सभी समाज के लोगों में पहचान रखती है। आज उनको किसी भी पहचान की जरूरत नही कई सरकारी विभागों में पहचान रखती है व उनसे समाज व कौम का काम कराना भी जानती है। यही वजह है लोंग अपनी परेषानीयों को लेकर उनके पास आते है, और व अपने मषवरों से अपनी कोषिषो से उसकी परेषानीयों दूर करती है। और इसी समाज सेवा को देखकर उनके पति षमीम फारूकी भी उनका उत्साह बढ़ाते है वे पूरा पूरा सहयोग भी देते है यासमीन फारूकी फारूकी का मानना है आज का युवा प्रगतिषील है। आज के युवाओं में काम क

पत्रकार नईम क़ुरैशी - स्केटिंग में स्टंड के गुरू शाहबाज़ सिद्दीकी

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स्केटिंग में स्टंड के गुरू शाहबाज़ सिद्दीकी    जयपुर: शाहबाज़ सिद्दीकी ने भूटान, बंग्लादेष, थाईलैंड, जैसे देषों में  स्केटिंग में स्टंड दिखाकर विदेषो में भी नाम कमाया और आपने षहर नाम रोषन किया, और इसके अलावा भारत के मसूरी, व मेरठ, सहित कई षहरोें में बड़े-बड़े प्रोग्रामों में अपने स्केटिंग में एक से बढ़कर एक स्टंडों से दर्षकों का मन मोह लिया और स्केटिंग में काफी लोकप्रियेता हासिल की, तथा उन्हेे अवार्डों से सम्मानित भी किया गया। शाहबाज़  द्दीकी जयपुर में विषेष पहचान रखते है और अपनी मंजिल तक पहुॅचने के लिए संघर्ष कर रहे है, स्केटिंग में अपने देष और अपने परिवार के विकास के लिए हर संभव प्रयत्न करतें हैं। शाहबाज़  सिद्दीकी मूलतः राजस्थान के जिला करोली गांव टोडा भीम के रहने वाले है। बचपन से ही देष के लिए कुछ करने का जस्बा रखने वाले पिछले सात वर्षो से स्कूलों व पार्को तथा अपने एसोसिएषन, (इंडिया क्लब एंड ग्रुप जयपुर), द्वारा कई स्केटिंग क्लासे निरन्तर चलाते है। शाहबाज़ सिद्दीकी बताते है, कि जब वे किसी को स्केटिंग सिखाते है तो सबसे पहले उनकी सुरक्षा का ख्याल रखते है। सिखाने से पहले म